Tuesday, August 12, 2008

Randomness Again....


इस आईने में सब सियाह नज़र आते हैं
ये रंग है आईने का या लोग बदल जाते हैं...

इक अरसे से बैठे थे, किसी के इंतज़ार में 
हम यहीं रह गए, वो छू के निकल जाते हैं...

ये नकाबपोशों का शहर है, हर चेहरा छुपा जाते हैं
दर्द देते हैं गहरा, फिर दोस्त बन के आते हैं...

नाराजगी है ख़ुद से, क्यूँ ख्वाब में वो आते हैं
और क्यूँ उसी मुस्कराहट पे हम अब भी जिए जाते हैं... 


Something that started off on a movie outing night...in a Pizza Hut, and was completed the next day in an Eco Class..

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