उस डायरी के कुछ पन्ने अभी भी खाली हैं..
कल यूँ ही कुछ पुरानी यादों की किवाड़ से ठोकर लग के गिर पड़ा था..
वहीँ कहीं फर्श पे ये डायरी मिली..
खोलते ही कुछ सर्द हवा में हंसी ठिठोली सुनाई दी..
पड़ोस में खेलते बच्चे होंगे..
हाँ वही होंगे...क्यूंकि पन्ने बोलते कहाँ हैं..
कुछ चेहरे से लिखे थे उस डायरी में..
नाम नहीं है..बस चेहरे हैं..
पहले से बदले हुए नज़र आते हैं..
शायद पीले पन्ने होंगे..
हाँ वही होंगे..क्यूंकि चेहरे बदलते कहाँ हैं..
इन खाली पन्नों में से भी कुछ इंक के दाग नज़र आते हैं
ऐसा लगता है की इनपे भी कुछ लिखावट थी..
पर वक़्त की कुछ बारिशों ने शायद स्याही का रंग उड़ा दिया
शायद खाली पन्ने ही होंगे..
हाँ वही होंगे..क्यूंकि लिखे पन्नों का रंग उड़ता कहाँ है..
उस डायरी के कुछ पन्ने अभी भी खाली हैं..
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